चीन में नवंबर नहीं सितंबर से फैलने लगा था कोरोना का प्रकोप-ट्रंप ने दिखाई चीन की चोरी



अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर चीन पर फिर हमला बोला है। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध को ट्वीट किया जिसमें दावा किया गया है कि चीन में कोरोना वायरस का प्रकोप नवंबर नहीं, बल्कि अगस्त से फैलाना शुरू हो गया था। इस शोध में सैटेलाइट तस्वीरों का हवाला दिया गया है जिसमें चीन के अस्पतालों के बाहर भारी भीड़ दिखाई दे रही है।

वही, शोधकर्ताओं ने चीन में इंटरनेट पर संक्रमण को लेकर की जा रही सर्फिंग को भी शामिल किया है। चीन ने रविवार को जारी श्वेतपत्र में कहा था कि वायरस सबसे पहले 17 दिसंबर को पाया गया और चीनी वायरॉलजिस्ट्स ने 19 जनवरी को यह पुष्टि की कि यह इंसानों से फैल सकता है। इसके बाद 23 जनवरी को लॉकडाउन लगाया गया। हालांकि, हार्वर्ड की स्टडी में दावा किया गया है कि सैटलाइट तस्वीरों से यह पता चलता है कि वुहान के पांच अस्पतालों में अगस्त से दिसंबर के बीच ट्रैफिक बढ़ा हुआ था। इसके साथ ही ऑनलाइन सर्च में 'खांसी' और 'डायरिया' के बारे में भी ज्यादा सर्च किया जा रहा था।

हार्वर्ड की स्टडी को लीड करने वाले डॉ. जॉन ब्राउनस्टीन का कहना है कि जाहिर तौर पर जिसे कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत माना जाता है, उस वक्त से काफी पहले सामाजिक तौर पर हलचल होने लगी थी। रिसर्चर्स ने कमर्शियल सैटलाइट डेटा में 2018 और 2019 के बीच तुलना की। एक केस में रिसर्चर्स ने पाया कि वुहान के सबसे बड़े अस्पताल तिआन्यू में अक्टूबर 2018 में 171 कारें पार्क थीं जबकि उसकी जगह अगले साल 2019 में 285 गाड़ियां पार्क की गई थीं।

ऑनलाइन सर्च के मामले में पाया गया कि चीन के सर्च इंजन बाइडू में कोरोना वायरस के लक्षणों से मिलते-जुलते लक्षण सर्च किए जा रहे थे। हालांकि, डॉ. ब्राउनस्टीन का कहना है कि अभी पूरा सच जानने के लिए और स्टडी करने की जरूरत है ताकि यह पता चल सके कि क्या हुआ था और लोग इस बारे में जान सकें कि ऐसी महामारियां कैसे शुरू होती हैं और आबादी में कैसे फैलती हैं। इस बारे में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग से पूछा गया तो उन्होंने कहा मुझे लगता है कि यह बकवास है, बिलकुल बकवास है। ट्रैफिक वॉल्यूम जैसी सतही ऑब्जर्वेशन के सहारे ऐसा नतीजा निकालना। माना जाता है कि नवंबर में वायरस सबसे पहले चीन में देखा गया था। 31 दिसबंर को डब्ल्यूएचओ को निमोनिया के मामलों की जानकारी दी गई, जिनकी जड़ के बारे में नहीं पता था।
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