आज़ादी के कुछ दिन बाद भारत को राजशी तंत्र से हटाकर देश की बागडोर प्रजातंत्र के हाथो में सौप दी गई थी। जिसके बाद कुछ शादी परिवार तो डटे रहे लेकिन कुछ परिवार धीरे- धीरेकर समय के साथ गुमनामी के अंधेरे में चले गए। कुछ वैसा अवध के आखिरी सहज़ादे अली के साथ, जिनकी मौत दिल्ली में ही स्तिथ किसी खंडहर में हुआ। तो आइए जानते हैं आखिरी नवाब और उनकी कहानी के बारे में।
दरअसल, हाल ही में शहज़ादे की बेगम विलायत महल ने ये दावा किया है कि साल 1857 की क्रांति के सबेसे अंतिम नवाब वालिद अली के मौत के बाद मानों उनका पूरा परिवार दुनिया से कटकर रहने लगा। वैसे हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह परिवार दूसरों पर कुत्ते छोड़ने के लिए बदनाम रहा है।
हालांकि, 1970 में ये परिवार एक बार फिर लाइमलाइट में आया जब बेगम ने फिर से शाही ठाट-बाट के साथ ज़िंदगी जीने की ठानी। उस वक्त वे अपने बेटे, बेटी और 7 नेपाली नौकरों के साथ दिल्ली आई और दिल्ली के रेस्ले स्टेशन के फर्स्ट क्लास वेटिंग रुम में रहने लगी। उस वक्त उनके साथ 15 शिकारी कुत्ते भी उनके साथ आए थे।
दिल्ली आने के बाद रानी ने ज़िद ठानी कि सरकार जब तक उनके परिवार के बलिदान को स्वीकार नहीं कर लेता वो वहीं रहेंगी। लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को पूरा करने में 8 साल लगा दिए। और फिर उन्हें दिल्ली के रिज क्षेत्र में बना मालचा महल रहने को दे दिया गया।
लेकिन सरकार द्वारा दिए गए इस महल में ना तो पानी था और ना ही बिजली। उसके बावजूद ये परिवार यहां रहने को तैयार था, साथ ही रानी ने महल के बाहर बोर्ड भी लगवाया था जिसपर लिखा था कुत्तों से सावधान रहें।