इतिहास के चंद पन्नों में ही दिख जाती है शक्सियत उसकी, हिला दिया था जिसने विश्व को आयरन लेडी पहचान थी उसकी, जब तक भारत है तब तक इंदिरा गांधी का नाम रहेगा, विश्व में भारत को पहचान दिलाने वाली इंदिरा गांधी को उनके अद्भुत नेतृत्व तथा साहसिक निर्णय के कारण ही आयरन लेडी कहा जाता है। जब इंदिरा इतने अटल विचारों वाली थीं तो सोचो उनके जीवन साथी कितने बुलंद विचारों वाले होंगे। इंदिरा गांधी के पति थे फ़िरोज़ गांधी। लेकिन क्या आपको पता है कि जवाहरलाल नेहरु को अपने ही दामाद फ़िरोज़ गांधी से आपत्ति थी। चलिए हम बताते है आपको देश का पहला भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वाले फ़िरोज़ गांधी के कुछ अनसुने राज़ के बारें में-
सबसे बड़े थे फ़िरोज़ गांधी
पांच भाई बहनों में सबसे बड़े फिरोज़ गांधी का असली नाम दरअसल फिरोज़ घांदी था। उनके पिता जहांगीर घांदी गुजरात के भरूच के रहने वाले एक पारसी थे लेकिन कुछ इतिहासकार उन्हें मुस्लिम भी मानते थे। पिता की मौत के बाद फिरोज अपनी मां रत्तीमई फरदून के साथ भरूच से पहले मुंबई और फिर इलाहाबाद आकर रहने लगे। बताया जाता है कि यहाँ उनकी मौसी डा. शीरीन कमिसएरिएट रहती थीं, जो सिटी लेडी डफरिन हॉस्पिटल में एक प्रख्यात सर्जन थीं।
आज़ादी के आन्दोलन में पहली बार इंदिरा से मुलाकात हुई
इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने विद्या मंदिर हाईस्कूल में एडमिशन लिया और यहां से स्कूली शिक्षा पूरी कर इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की, पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने आजादी के आंदोलन में भी जम कर भाग लेना शुरू कर दिया। 1930 में उन्होंने कई आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाई। यहीं पहली बार उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी उर्फ इंदिरा प्रियदर्शनी से हुई।
कैसे हुए फ़िरोज़ घांदी से गांधी
फिरोज घांदी, गांधी कैसे हुए इसको लेकर इतिहासकारों में हमेशा ही विवाद रहा है। कहा जाता है कि आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अपना सरनेम घांदी से गांधी कर लिया था। जबकि किस्सा ये भी है कि इंदिरा गांधी से शादी के बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरू नाराज हुए तो महात्मा गांधी ने उन्हें अपना सरनेम गांधी दे दिया था जो आज तक गांधी परिवार के साथ चला आ रहा है, अब सच क्या है यह तो भगवान जानते हैं या गांधी परिवार।
इंदिरा-फ़िरोज़ की प्रेम कहानी
वैसे तो इंदिरा और फिरोज़ गांधी के प्रेम संबंध और शादी को लेकर भी बहुत किस्से प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जब इंदिरा की मां कमला नेहरू टीबी की गंभीर बीमारी से जूझ रहीं थी तब फिरोज़ गांधी ने उनकी बहुत सेवा की थी। जब स्विटजरलैंड में कमला नेहरू की मौत हुई तब उनके साथ फिरोज़ गांधी वहीं मौजूद थे। इससे पूर्व एक बार एक आंदोलन के दौरान जब कमला नेहरू बेहोश होकर गिरीं तो फिरोज़ गांधी उन्हें अपनी बाजुओं में उठाकर ले गए थे। यह देख इंदिरा फिरोज़ से काफी प्रभावित हुईं और दोनों को प्यार हो गया।
शादी के बाद
शादी के बाद इंदिरा का जीवन बादल सा गया। शादी के बाद फिरोज़ ने पत्नी इंदिरा और ससुर जवाहर लाल नेहरू के साथ और सक्रियता से आज़ादी के आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। इस कारण फिरोज़ ने अगस्त 1942 में जेल यात्रा भी की। सालभर तक वह इलाहाबाद जेल में रहे। जेल से छूटने के बाद वह फिर आंदोलन में जुट गए। इसी बीच इंदिरा ने 1944 में राजीव और 1946 में संजय गांधी को जन्म दिया।
इंदिरा ने संभाली ग्रहस्थी
देश को आज़ादी मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने तो तमाम राजनीतिक जिम्मेदारियों को छोड़ इंदिरा दोनों बच्चों की परवरिश में लग गईं। उनकी जगह राजनीति में मोर्चा संभाला फिरोज़ गांधी ने जो रायबरेली सीट से पहले सांसद चुने गए। इसी बीच उन्होंने नेहरू द्वारा शुरू किए गए अखबार नेशनल हेराल्ड और नव जीवन के प्रकाशन की जिम्मेदारी भी संभाली। वो एक पत्रकार और प्रबंध निदेशक दोनों रूप में अखबार से जुड़े रहे।
नेहरु और गांधी परिवार में पड़ी दरार
1952 में रायबरेली से पहले निर्वाचित सांसद चुने जाने के साथ ही फिरोज गांधी और जवाहर लाल नेहरू के रिश्तों में दरार आनी शुरू हो गई थी। कहा जाता है कि फिरोज गांधी राजनीति में बहुत ईमानदार और सक्रियता से काम करते थेए जाहिर है इतनी लगन से काम करेंगे तो वह सरकार की आलोचना भी करेंगे। इसकी वजह से उनके ससुर और देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी असहज होना पड़ता था और कई बार शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ता था।
देश का पहला भ्रष्टाचार फ़िरोज़ गांधी ने ही उजागर किया था
दिन प्रति दिन फिरोज़ गांधी का रवैया लगातार सरकार के प्रति आलोचनात्मक बना रहा। कहा जाता है कि फिरोज़ नेहरू सरकार की आर्थिक नीतियों और बड़े उद्योगपतियों के प्रति झुकाव को लेकर बहुत नाराज रहते थे। कहा जाता है कि आजाद भारत में सरकार का पहला घोटाला सामने लाने का श्रेय भी फिरोज़ गांधी को जाता है जिन्होंने दिसंबर 1955 में एक बैंक और इंश्योरेंश कंपनी के चेयरमैन राम किशन डालमिया के फ्रॉड को उजागर किया। जिन्होंने बैंकों के पैसे का उपयोग निजी कंपनियों में निवेश के लिए किया था।
विरोधी सांसदों से ज्यादा संसद में इनकी आवाज सुनी जाती थी
उन्होंने ही देश की राष्ट्रीय इंश्योरेंस कंपनी में हुए इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया था। इस घोटाले को लेकर फिरोज़ गांधी का रुख इतना मुखर था कि विरोधी सांसदों से ज्यादा उनकी आवाज संसद में सुनी जाती थी। उनके इस विरोध ने जवाहर लाल नेहरू की पाक साफ छवि को भी नुकसान पहुंचाया। यह फिरोज़ गांधी ही थे जिनके आवाज उठाने के कारण नेहरू सरकार के वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद ही फिरोज़ की आवाज शांत नहीं हुई और वो हर वाजिब मौके पर सरकार की आलोचना करने से नहीं चूकते थे।