कैसे शनि की कु-दृष्टि से गणेश जी को मिला हाथी का मुंह? यह है पूरी कहानी…

भगवान गणेश की महिमा को तो हिंदू धर्म के लोग बड़ी अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन हम आपको आज श्री गणेश की के बारे में कुछ ऐसी बात बताएंगे जिसके बारे में शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। श्री गणेश चलीसा के अनुसार माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश के लिए काफी कठोर तप किया था। इस तप से खुश होकर स्वंय श्री गणेश जी ने बाह्मण का रूप धारण करके माता पार्वती के पास आए और कहा आपको बिना गर्भ धारण किए ही एक दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी। ऐसा कहने के बाद वो अंतरध्यान हो गए और पालकी में एक छोटे से बच्चे का रूप लेकर लेट गए।

जब शनि पहुंचे गणेश को देखने

इसके बाद भगवान शिव और पार्वती ने एक विशाल उत्सव रखा। भगवान शिव और माता पार्वती ने सभी देवी- देवताओं समेत गंधर्व ऋषि-मुनि सभी को अपने बच्चे को आशिष प्रदान करने का आग्रह किया। इसके बाद सभी नन्हे गणेश भगवान को देखने के लिए पहुंचे और इसमें शनि देव भी शामिल थे लेकिन वो अपनी नजर की वजह से बालक को देखने से बच रह थे। इससे माता पार्वती को काफी बुरा लगा। उन्होंने शनिदेव से कहा कि आपको ये उत्सव अच्छा नहीं लगा, बालक का आगमन भी अच्छा नहीं लगा।
इसके बाद शनिदेव संकुचित होकर किसी तरह बच्चे को देखने गए लेकिन जैसे ही उन्होंने बालक को देखा उसका सिर आकाश में उड़ गया। इसके बाद तो उत्सव का माहौल शोक में परिवर्तित हो गया, माता पार्वती बेहोश हो गई। इसके बाद गरूड़ जी को चारो दिशाअों में जाकर उत्तम सर लाने को कहा गया तब वो हाथी का सर लेकर आए और भगवान शंकर ने उसे जोड़कर दोबारा जीवित कर दिया। इस तरह से गणेश जी का सिर हाथी का सिर से बना।

कथा

एक बार गणेश जी एक लड़के का वेष धरकर नगर में घूमने निकले। उन्होंने अपने साथ में चुटकी भर चावल और चुल्लू भर दूध ले लिया। नगर में घूमते हुए जो मिलता , उसे खीर बनाने का आग्रह कर रहे थे। बोलते – ” माई खीर बना दे ” लोग सुनकर हँसते। बहुत समय तक घुमते रहे , मगर कोई भी खीर बनाने को  तैयार नहीं हुआ। किसी ने ये भी समझाया की इतने से सामान से खीर नहीं बन सकती पर गणेश जी को तो खीर बनवानी ही थी।
अंत में एक गरीब बूढ़ी अम्मा ने उन्हें कहा बेटा चल मेरे साथ में तुझे खीर बनाकर खिलाऊंगी। गणेश जी उसके साथ चले गए। बूढ़ी अम्मा ने उनसे चावल और दूध लेकर एक बर्तन में उबलने चढ़ा दिए। दूध में ऐसा उफान आया  कि बर्तन छोटा पड़ने लगा। बूढ़ी अम्मा को बहुत आश्चर्य हुआ कुछ समझ नहीं आ रहा था। अम्मा ने घर का सबसे बड़ा बर्तन रखा। वो भी पूरा भर गया। खीर बढ़ती जा रही थी। और उसकी खुशबू भी फैल रही थी।
गणेेश
खुशबू से अम्मा की बहु की खीर खाने की इच्छा होने लगी। उसने एक कटोरी में खीर निकली और दरवाजे के पीछे बैठ कर बोली – ” ले गणेश तू भी खा , मै भी खाऊं  ” और खीर खा ली। बूढ़ी अम्मा ने बाहर बैठे गणेश जी को आवाज लगाई। बेटा तेरी खीर तैयार है। आकर खा ले। गणेशजी बोले अम्मा तेरी बहु ने भोग लगा दिया , मेरा पेट तो भर गया। खीर तू गांव वालों को खिला दे।
बूढ़ी अम्मा ने गांव वालो को निमंत्रण देने गई। सब हंस रहे थे। अम्मा के पास तो खुद के खाने के लिए भी कुछ नहीं है गांव को कैसे खिलाएगी। लेकिन भगवान गणेश जी कृपा से घर पर सब आये। बूढ़ी अम्मा ने सबको पेट भर खीर खिलाई। सभी ने तृप्त होकर खीर खाई लेकिन फिर भी खीर ख़त्म नहीं हुई। भंडार भरा ही रहा।
Previous Post Next Post

.