सिर्फ 51 रुपए के लिए इस बड़े बैंक के खिलाफ 5 साल तक लड़ा केस, अब जा के हुई जीत और बैंक ने दिया हर्जाना

आज के समय में पैसे कमाना जितना कठिन है उससे से कही ज्यादा कठिन है उन पैसों का संभाल कर रखना और उसका सही समय अपर सही उपयोग करना |पहले के समय में ज्यादातर लोग पैसों को अपने घर में या फिर तिजोरी में रखा करते थे लेकिन आज कल अगर पैसे रखने की सबसे सेफ कोई जगह है तो वो है बैंक | जी हां हम बहुत ही विश्वास और भरोसे के साथ अपने पैसो को बैंक में रखते है की वहाँ हमारे पैसे सुरक्षित रहेंगे |
लेकिन आज कल इन बैंकों में भी ना जाने कितनी धांधली चल रही है जिसकी वजह से आपके कितने पैसे नुकसान हो जाते हैं और आपको पता भी नहीं चलता लेकिन आज हम आपको बैंक से जुड़ी जिस घटना से रूबरू कराने जा रहे है  उसे जानकर शायद एक बार आप भी सोच में पड़ जायंगे |दरअसल ये मामला है बैंक के ही एक उपभोक्ता से जुड़ा हुआ जिसने की  सिर्फ 51 रुपए के लिए बैंक के खिलाफ पूरे 5 साल तक केस कैसे लड़ता रहा और अंत में उस व्यक्ति की जीत हुई  क्योंकि कहा जाता है ना की सच की हमेशा ही जीत होती है , भले ही देर से ही सही।
यह था  पेचीदा मामला
बैंगलुरु के केएचबी रोड पर रहने वाले सय्यद इश्रथुल्ला हुस्सैनी एसबीआई के पुराने कस्‍टमर हैं। साल 2014 में 23 सितंबर को उन्‍होंने अपने बैंक अकाउंट के चेक द्वारा 20 हजार रुपए टि्वंकल पब्लिक स्‍कूल के खाते में ट्रांसफर किए, लेकिन पूरा दिन बीत गया, लेकिन स्‍कूल के खाते में पैसे नहीं पहुंचे। इसके 3 दिन बाद स्‍कूल वालों ने हुसैनी को फोन करके पैसे न पहुंचने की जानकारी। यह सुनकर हुसैनी को काफी शर्मिंदगी हुई।
हुसैनी ने इसके बाद 29 सितंबर को बैंक से इस बारे में पूछा, तो उन्हें पता चला कि सं‍बंधित कर्मचारी छुट्टी पर है। इसके बाद हुसैनी ने 30 सितंबर को अपनी फंसी हुई पेमेंट को लेकर बैंक को ईमेल भेजी, लेकिन उसका भी बैंक की ओर से कोई जवाब उन्‍हें नहीं मिला। इसके बाद हुसैनी ने 2 अक्‍टूबर को बैंक को फिर से एक मेल भेजी, जिसके जवाब में बैंक ने बताया कि 1 अक्‍टूबर को 20 हजार रुपए स्‍कूल के खाते में ट्रांसफर हो चुके हैं। उस मेल में बैंक ने इस देरी का कोई कारण भी नहीं बताया और न ही बैंक को अपनी खराब सर्विस के लिए कोई पश्‍चाताप था।
इसके बाद 25 मई 2015 को हुसैनी के SBI अकाउंट से अचानक 51 रुपए काट लिए गए। जब हुसैनी ने इसका कारण जानने के लिए बैंक से संपर्क किया तो उन्‍हें बताया गया कि बैंक ने उनकी नई चेकबुक उनके घर के पते पर कोरियर से भेजी थी। घर उस वक्‍त बंद था, जिसके कारण कोरियर पर्सन ने वापस लौटना पड़ा। हुसैनी ने बताया कि उन्‍होंने चेकबुक घर भेजने का ऑप्‍शन ही नहीं चुना था और उन्‍होनें बैंक ब्रांच पर ही जाकर अपनी चेकबुक रिसीव की थी, ऐसे में कोरियर चार्ज के नाम पर 51 रुपए काटने का कोई लॉजिक नहीं बनता।
इस तरह से सय्यद  के साथ बैंक की खराब सर्विसेज का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था लेकिन फिर भी सय्यद हुसैन सब्र करके बैठे हुए थे लेकिन इनकी सब्र का बांध तब जाके टूटा जब 10 जुलाई 2015 को हुसैनी अपने खाते से 40 हजार रुपए निकालने के लिए बैंक गए। वहां काफी भीड़ थी, तो उनसे इंतजार करने को कहा गया। हालांकि जब हुसैनी ने देखा कि बैंक में ट्रांसेक्‍शन के लिए चार काउंटर बने हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ दो काउंटर्स पर ही काम हो रहा था।
 इस पर जब हुसैनी ने बैंक अधिकारियों से इसका कारण जानना चाहा, तो बैंक अधिकारियों ने उनके साथ अच्‍छा व्‍यवहार नहीं किया। जिसके बाद हुसैनी ने 23 नवंबर 2015 को बैंक के खिलाफ उपभोक्‍ता फोरम में बैंक के खिलाफ जाकर केस दर्ज करा  दिया और जिसका नतीजा 5 साल बाद अब आ चुका है। और सबसे बड़ी ख़ुशी की बात तो यही है की इस केस को लड़ने के बाद  हुसैनी की जीत  हुई और इस फोरम ने बैंक को आदेश दिया है कि 9 हजार रुपए हर्जाने के रूप में हुसैनी को प्रदान करे।इसीलिए कहा जाता है की सब्र और सच्चाई का फल मीठा होता है
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