यह बताने की जरूरत नही की भगवान कृष्ण की लीला कितनी ज्यादा मनमोहनी होती है, श्री कृष्ण ने अपनी तमाम लीलाओं से तरह तरह के असंभव कार्य करे तथा कराये है। मगर आपने ध्यान दिया होगा की भगवान कृष्ण के हाथों मे सदा ही उनकी एक सबसे प्रिय वस्तु रहती थी, जिसे वो अपने प्राणो से भी ज्यादा सँजो कर रखते थे। उनकी बांसुरी को सुनकर इंसान तो क्या पशु-पक्षी भी मोहित हो जाते थे। शायद आपको इस बात का अंदाज़ा नहीं होगा की भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी में जीवन का सार छुपा हुआ है, उनकी बांसुरी हमें हमेशा यह बताती है कि इंसान का आचरण कैसा रहना चाहिए।
आपको बता दे की इन्हीं तमाम गुणों की वजह से एक छोटी सी बांसुरी भगवान कृष्ण को बहुत ही ज्यादा प्रिय थी। आज हम आपको उनकी बांसुरी से संबन्धित कुछ बातें बताने जा अरहे है जो निश्चित तौर पर आपके जीवन मे भी कहीं ना कहीं कोई सीख जरूर देगी साथ ही कुछ बहुत ही मूल्यवान संदेश भी। ऐसा था की एक बार कृष्ण जी यमुना नदी के तट पर बंसी बजा रहे थे, उनकी बांसुरी की बेहद मधुर तान सुनकर उनके आसपास कई सारी गोपियां आ गई और मौका पाकर उन्होंने धीरे से श्रीकृष्ण की बांसुरी को छुपा लिया। बाद में गोपियों ने बांसुरी से पूछा ‘आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था जो तुम केशव के गुलाब के पंखुडी जैसे होंठों का लगातार स्पर्श करती रहती हो, इतना सुनते ही पहले तो बांसुरी ने हल्की सी मुस्कान छेड़ी फिर कहा ‘मैंने भगवान श्रीकृष्ण के नजदीक आने के लिए कई जन्मों की प्रतीक्षा की है।
बांसुरी ने बताया की जब त्रेतायुग में भगवान श्री राम वनवास काट रहे थे उस समय मेरी उनसे मुलाक़ात हुई थी, तब उनके चारो तरफ ढेर सारे मनमोहक पुष्प और फल थे। उसने आगे कहा की उन पुष्पों की तुलना में मुझमें ऐसा कोई भी विशेष गुण नहीं था, मगर फिर भी भगवान श्री राम ने मुझे अन्य पौधों के बारबार पूरा महत्व दिया और उस वक़्त उनके कोमल चरणों का स्पर्श पाकर मुझे बहुत ही प्रेम का अनुभव होता था। उस वक़्त उन्होने मेरी कठोरता की बिलकुल भी परवाह नहीं की। मुझे पहली बार अपने सम्पूर्ण जीवन में किसी ने इतने प्रेम से स्वीकारा था और उसी समय मैंने यह तय कर लिया था की अब जो भी हो मई आजीवन उनके ही साथ रहूँगा।