केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में कहा है कि लॉकडाउन के दौरान मध्य-पूर्व में फंसे भारतीयों को लाने में गर्भवती महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। जस्टिस विभू बाखरु की बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग से हुई सुनवाई के बाद केंद्र सरकार की इस दलील को नोट किया।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एएसजी मनिंदर आचार्य और जसमीत सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) का पालन करेगी। एसओपी में गर्भवती महिलाओं को लाने की प्राथमिकता दी जाएगी। एसओपी में कहा गया है कि चिकित्सा आपातकाल की जिन्हें जरुरत है उन्हें वापस लेकर आने में प्राथमिकता दी जाएगी। उसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से वकील सुभाष चंद्रन ने कहा कि केंद्र सरकार को एसओपी का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया जाए। उसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे रियाद स्थित भारतीय उच्चायोग से संपर्क करें।
यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन ने दायर याचिका में मध्य पूर्व में फंसी 56 गर्भवती नर्सों को वापस लाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी। याचिका में मांग की गई थी कि 56 गर्भवती नर्सों को वापस लाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई की जाए। 56 में से 55 नर्स सऊदी अरब में फंसी हुई हैं जबकि एक नर्स कुवैत में फंसी हुई है। इन नर्सों की स्थिति काफी खराब है और उन्हें कोरोना के संक्रमण का खतरा है। याचिका में कहा गया था कि इन गर्भवती नर्सों को तुरंत चिकित्सा सहायता और मनोवैज्ञानिक मदद की जरूरत है।
याचिका में कहा गया था कि अधिकतर नर्सें अपने तीसरे तिमाही गर्भ काल से गुजर रही हैं। गर्भवती नर्सों को वंदे भारत योजना के पहले चरण में लाने के लिए कोई प्राथमिकता नहीं दी गई। एयरलाइंस कंपनियों के दिशा-निर्देश के मुताबिक किसी भी गर्भवती महिला को उसके 36 हफ्ते के भ्रूण के बाद यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जाती है। इस तरह अगर और देर की गई तो ये गर्भवती नर्सें मध्य-पूर्व में ही फंसी रह जाएंगी। याचिका में कहा गया था कि ये नर्स सऊदी अरब में अकेले रह रही हैं। उनकी देखभाल करनेवाला उनके पास कोई मौजूद नहीं है। उन्हें चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। इसलिए उन्हें विशेष चार्टर्ड फ्लाइट से भारत वापस लाने के लिए दिशा निर्देश जारी किये जाएं।