भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने गलतियां सुधारने की उत्तर प्रदेश सरकार की प्रवृत्ति की सराहना करते हुए अन्य राज्यों से भी श्रमिक विरोधी अध्यादेश वापस लेने की मांग की है। बीएमएस ने कहा है कि श्रम कानूनों में कोई भी बदलाव ट्रेड यूनियन और अन्य संगठनों से विचार-विमर्श के बाद ही किया जाना चाहिए।
बीएमएस के राष्ट्रीय महामंत्री बिरजेश उपाध्याय ने गुरुवार को जारी विज्ञप्ति में कहा कि 20 मई को देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन के दौरान संगठन द्वारा उठाए गए श्रमिकों से संबंधित मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार का रुख सराहनीय है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के इस रुख का ही परिणाम है कि वित्तीय पैकेज की घोषणा के दौरान केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यह स्पष्ट कर दिया था कि श्रम कानूनों में परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश का सहारा नहीं लेगी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का यह बयान उन चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं केरल के लिए स्पष्ट जवाब है, जिन्होंने अध्यादेश के जरिए श्रम कानूनों में परिवर्तन कर दिए।
उल्लेखनीय है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने हाल में कहा था कि सुधारों का मतबल श्रम कानूनों को पूरी तरह समाप्त करना नहीं है। कुमार के मुताबकि केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने अपने रुख को सख्त करते हुए राज्यों को स्पष्ट किया है कि वे श्रम कानूनों को समाप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) में हस्ताक्षर करने वाले देशों में है।
केंद्रीय श्रम राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार का भी कहना है कि श्रम कानूनों में संपूर्ण बदलाव को श्रम सुधार नहीं कहा जा सकता।
बीएमएस महामंत्री उपाध्याय ने कहा कि मंत्री गंगवार और अन्य केंद्रीय अधिकारियों के बयान उन चार राज्यों के लिए अध्यादेश वापस लेने को लेकर स्पष्ट निर्देश है, जिन्होंने कानून में बदलाव के लिए अध्यादेश का सहारा लिया। उपाध्याय ने कहा कि हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी गलतियों में सुधार करते हुए श्रम कानूनों में परिवर्तन से जुड़ा अध्यादेश वापस ले लिया है। राज्य सरकार का यह निर्णय प्रशंसनीय है। अन्य राज्यों को भी उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले का अनुसरण करना चाहिए।