3000 फीट की उंचाई पर मिली रहस्यमयी गणेश मूर्ति, पौराणिक कथाओं से जुड़े कई राज खुले

वैसे तो आपको भारत के हर शहर, गाँव और कस्बे में भगवान के बने कई मंदिर दिख जाएंगे. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी रहस्यमयी मूर्ति के बारे में बताएंगे जो जमीन से लगभग 3000 फीट की उंचाई पर मिली हैं. ग्रेनाईट पत्थर से बनी ये मूर्ति वास्तुकला की अद्भुत मिसाल हैं. इतनी उंचाई पर ये मूर्ति कब और कैसे आई ये कई लोगो के लिए रहस्य बना हुआ हैं. आइए विस्तार से जाने क्या हैं पूरा मामला…
छत्तीसगढ़ राज्य में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 30 किमी दूरी पर ढोलकल पहाड़ी पर पुरातत्व विभाग को गणेश जी की 6 फीट ऊंची और 2.5 फीट चौड़ी ग्रेनाईट से बनी एक मूर्ति मिली हैं. इस मूर्ति के दाएं हाथ में फरसा और टूटा हुआ दांत हैं. इसके नीचे के दाएं हाथ में अभय मुद्रा में अक्षयमाला हैं. वहीँ इसके बाएँ हाथ में मोदक रखा हुआ हैं.

मूर्ति पर बना हैं नाग का चित्र

इस मूर्ति को देख पुरातत्व विभाग का कहना हैं कि ये 11वीं सदी की प्रतिमा हैं. इस गणेश प्रतिमा के ऊपर नाग का चित्र भी अंकित हैं. इस नाग के चित्र से अंदाजा लगाया जा रहा हैं कि 11वी सदी में जब नागवंशी राजाओं का राज हुआ करता था तब उन्ही लोगो ने इसकी स्थापना की होगी. हालाँकि पुरात्व विभाग इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हैं कि उस जमाने में ऐसी कौन सी तकनीक का उपयोग कर इस मूर्ति को 3000 फीट ऊँची पहाड़ी पर लाया गया होगा.

इस पौराणिक कथा से हैं कनेक्शन

आप लोगो ने पौराणिक कथाओं में गणेश जी और परशुराम के युद्ध के बारे में सूना होगा. इस युद्ध में परशुराम ने अपने फरसे से गणेश जी का एक दन्त काट दिया था. ऐसा कहा जा रहा हैं कि ये युद्ध इसी ढोलकल पहाड़ी पर हुआ था. शायद यही वजह रही हैं कि नागवंश के राजाओं ने इस पहाड़ी पर गणेश प्रतिमा की स्थापना की हैं.

आदिवासी लोग मानते हैं मूर्ति को रक्षक

वर्तमान में यहाँ रहने वाले आदिवासी लोग इस मूर्ति की पूजा करते हैं. ये लोग इन्हें अपना रक्षक मानते हैं. चुकी यहाँ परशुराम ने अपने फरसे से गणेश जी का दांत काटा था इसलिए इस पहाड़ी के नीचे बने एक गाँव का नाम फरसपाल रखा गया हैं.

इसलिए रखा ढोलकल नाम

दरअसल इस पहाड़ी का उपरी हिस्सा जहाँ गणेश जी की प्रतिमा रखी गई हैं आकार में बिलकुल बेलनाकार हैं जो कि एक ढोल की तरह दिखाई देता हैं. इसके अलावा जब इस पहाड़ी पर ढोल बजाया जाता हैं तो इसकी आवाज दूर दूर तक सुनाई देती हैं. वहीँ ‘कल’ का स्थानीय भाषा में मतलब पहाड़ होता हैं. बस यही वजह हैं कि इसका नाम ढोलकल रख दिया गया.
आपको बता दे कि इस पहाड़ी की चढ़ाई करना बहुत मुश्किल हैं. यहाँ बस कुछ ख़ास मौको पर ही लोग आते हैं और गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार गणेश जी की एक ऐसी अद्भुत प्रतिमा पुरे बस्तर में कहीं नहीं हैं, जिसके चलते उस दौरान इस मूर्ति को बनाने में इस्तेमाल की गई तकनीक अभी भी रहस्य बनी हुई हैं.
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