हमारे समाज में धार्मिक व पुरानी कहानियों को हमेशा बड़े बुजुर्ग सुनाते हैं कहा जाता है कि हर कहानी का वर्तमान से कुछ न कुछ संबंध अवश्य होता है। ऐसी ही एक कहानी है भगवान शिव व पार्वती की। जी हां हम अक्सर हर छोटी-बड़ी ख़ुशी को अपने परिवार के साथ बांटतें हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके एकल परिवार हैं वो पारिवारिक खुशियों से दूर हो जाते हैं जिससे वो परिवार का महत्व नहीं समझ पाते हैं। ऐसे ही प्यार व नोंक-झोंक भरे रिश्तों से बंधे भगवान शिव का भी परिवार था।
अब तक शिवपुराण में बताया जाता है कि शिव परिवार में स्वयं महादेव के अलावा माता पार्वती और उनके दो पुत्र थें जिनका नाम श्री कार्तिकेय और गणेश था। लेकिन ये बात आपको शायद ही पता होगी कि उनके परिवार में भगवान शिव की एक बहन भी थी। बताया जाता है कि जब माता पार्वती, भगवान शिव से विवाह कर कैलाश पर्वत पर आईं, तब वे कई बार उदास और अकेला महसूस करती थीं तभी भगवान शिव ने माता पार्वती से उदासी का कारण पूछा तो माता पार्वती ने कहा कि उन्हें एक ननद चाहिए।
शिव जी से पार्वती जी ने कहा काश मेरी एक ननद होती तो आपकी लंबी साधनाओं और ध्यान के दौरान जिससे मेरा मन लगा रहता। ऐसा सुनते ही भगवान शिव ने उनसे पूछा कि क्या आप ननद के साथ रिश्ता निभा पाएंगी? तभी माता पार्वती ने कहा भला ‘ननद से मेरी क्यों नहीं बनेगी’। तब भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए अपनी माया से एक स्त्री को उत्पन्न किया। वह स्त्री बहुत मोटी और भद्दी थी, उसके पैर भी फटे हुए थे।
भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा, ‘ये लो देवी, आ गई तुम्हारी ननद, इनका नाम असावरी देवी है’। ननद की खुशी में माता पार्वती उनकी खातिरदारी में जुट गई और उनके लिए जल्दी-जल्दी भोजन का प्रबंध करने लगीं। असावरी देवी का पार्वती जी ने खुब आदर सत्कार किया। लेकिन एक बार असावरी देवी को अचानक एक शरारत सूझी, उन्होंने देवी पार्वती को अपने फटे पांव की दरारों में छिपा लिया, जहां उनका दम घुटने लगा। कुछ ही पलों में असावरी ने उन्हें आजाद भी कर दिया।
लेकिन माता पार्वती ननद की ऐसी शरारतों से परेशान हो गई और उन्होंने भगवान शिव से कृपा कर ननद को अपने ससुराल भेज दें, अब और धैर्य नहीं रखा जाता। जिसके बाद भगवान शिव ने जल्द ही असावरी देवी को विदा कर दिया माना जाता है कि इसी वजह से हमेशा ननद-भाभी के बीच तकरार होते रहता है।