आज की दुनिया की कुछ सबसे बड़ी समस्याओं में से एक समस्या पर्यावरण प्रदूषण की है। समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि कई मामलों में तो दुनिया के सामूहिक प्रयास के बिना समस्या को हल करने में पूर्ण सफलता नहीं मिल सकती। सामूहिक प्रयास, व्यक्तिगत प्रयास की ही अगली कड़ी है और व्यक्तिगत प्रयास की दृष्टि से आज के मनुष्य के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। एक- पर्यावरण को स्वच्छ रखने में वह कैसे अपना योगदान दे और दूसरा- खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुके पर्यावरण में वह कैसे अपने स्वास्थ्य की रक्षा करे।
त्वचा को प्रदूषण से बचाने और खोयी नमी को वापस पाने के लिए जरूरी है कि नियमित रुप से त्वचा की देखभाल की जाए। वायु प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी है कि चेहरे को हर रोज धोएं, हफ्ते में दो बार चेहरे को एक्सोफोलिएट करें और मॉश्चरराइज करें। शोधों के मुताबिक जिन सौंदर्य उत्पादों में एंटीऑक्सीडेंट होते है वे प्रदूषण से त्वचा की रक्षा करते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही मानव नई-नई बीमारियों से जूझने के लिए विवश हुआ है। स्वच्छ प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छंद विचरण करता मानव हालांकि आज के आम व्यक्ति के मुकाबले लगभग तीन गुना अधिक शक्कर और चर्बी खाता था। उसकी ऊर्जा की खपत भी 7500 से 8000 किलो कैलोरी थी, जो वर्तमान में दो से ढाई हजार तक हो गयी है। तीन गुना ऊर्जा की खपत उनके लिए आसान थी क्योंकि वे भोजन और पानी की तलाश में निरंतर भटकते रहते थे। यह श्रम ही था कि वे कभी मोटापे या मोटापा जनित शारीरिक विकारों से क्लांत नहीं हुए। प्रकृति के विनाश के जरिए अपने विकास का सपना भौतिक सुविधाओं की दृष्टि से भले ही पूरा हो गया लगता है मगर वस्तुत: इस तथाकथित महाविकास से जुटी भौतिक सुविधाओं का सुखद या आनंददायी तथा सुकूनदायक उपभोग एक दु:स्वप्न सिद्ध हुआ है।
आज हमारे पास पैसा है मगर साथ मे मोटापा भी है, हृदय रोग भी है, पेट रोग भी है, मधुमेह है और तो और तनाव भी है। भोजन है मगर भूख नहीं। भोजन है मगर डॉक्टरी प्रतिबंध जबर्दस्त हैं। फास्ट फूड, जंक फूड और न जाने कैसे-कैसे तैयार भोजन शारीरिक श्रम के अभाव में तथा आधुनिक जीवन शैली के चलते कब्ज नामक बीमारी ने लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को तमाम तरह की बीमारियों ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है।
नई-नई दवाओं के निर्माता अखबारों में कब्ज के रोगियों को राहत के बेहतरीन सब्जबाग दिखाने वाले विज्ञापनों का सहारा लेकर भले ही अपने व्यापार को खूब चला रहे हों मगर रोगियों की हालत कुछ ऐसी बनी रहती है, ‘राही बदल गए हैं, मगर रस्ता आज भी वही है।’
आज हम आपको यहा कुछ प्रकृतिक तरीके बता रहे है जिनसे आपको अपने दैनिक क्रिया मे कुछ बदलाव कर के अपना स्वस्थ्य बनये रख सकते है। सुबह-सुबह बिना मुंह धुले एक से चार गिलास पानी पीना शुरू करें। शौच और मुख मार्जन से निपटकर 5-7 मिनट के लिए कुछ शारीरिक कसरत करें। दोनों समय के भोजन में सलाद जैसे खीरा ककड़ी, गाजर, टमाटर, मूली, पत्ता गोभी, शलजम, प्याज, हरा धनिया थोड़ी मात्रा में ही सही अवश्य शामिल करें। यही कुछ चंद प्राकृतिक तरीके है जिन्हे अपनाकर आप अपने आपको हमेशा स्वस्थ रख सकते हैं, क्योंकि प्रदूषणयुक्त इस युग में दवाइयां कब्ज से निजात तो कदापि नहीं दिला सकती हैं यह बात आप अपने जेहन मे गहराई से उतार लीजिए।