हनुमान जी के इस चमत्कार के आगे नासा के वैज्ञानिक भी हैं फेल, आप भी जानकर रह जाएंगे मंत्रमुग्द

हिन्दू धर्मशास्त्र में हनुमान जी की लीला को अपरम्पार माना गया है। इसका चर्चा रमायण में बरबस में ही मिल जाता है, लेकिन आज हम आपको हनुमान जी के एक ऐसे चमत्कार के बार एमेई बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर एक बार को आप को भी यकीन होजायेगा की वाकई में ईश्वर के चमत्कार के आगे मनुष्य का कोई मोल नहीं है। तो आईये जानते हैं की आखिर हनुमानजी ने ऐसा कौन सा चमत्कार किया था जिसने नासा के वैज्ञानिकों को भी फ़ैल कर दिया।

वैज्ञानिकों से पहले हनुमान जी ने बताई थी पृथ्वी से सूर्य की दूरी

आपको जानकर भले ही अचम्भा हो लेकिन सच यही है की पृथ्वी से सूर्य की दूर का आकलन सबसे पहले हनुमान जी ने ही किया था। इस सन्दर्भ में सबसे पहले बात करते हैं हमारे वैज्ञानिकों का जिन्होनें पृथ्वी से सूर्य की दूरी को एक आकलन नहीं बल्कि एक्यूरेसी के तौर पर बताया था। आपको बता दें की वैज्ञानिकों में सबसे पहले नासा के दो वैज्ञानिक जिओवन्नी कैसिनी और जिम रिचर ने सबसे पहले पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को बताया था।
ये दोनों ही वैज्ञानिक नासा के थे और इन्होनें बताया था की पृथ्वी से सूर्य की दूरी करीबन 149. 6 मिलियन है। तब से लेकर आज तक हम सब भी यही मानते आये हैं की वास्तव में इनदोनो वैज्ञानिकों ने ही पृथ्वी और सूर्य की बीच की दूरी का आकलन सबसे सरल और सटीक बताया है। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी की इन दोनों वैज्ञानिकों से भी पहले हनुमान जी ने पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का पता लगाया था।

हनुमान चालीसा में है सी बात का जिक्र

हनुमान जी के पूरे जीवन काल का वर्णन आपको तुलसीदास जी द्वारा लिखे गए हनुमान चालीसा में मिलता है। इसी धार्मिक ग्रन्थ में एक एक वर्णन ये भी मिलता है की पवनपुत्र हनुमान ने एक बार सूर्य को निगल लिया था और पूरे संसार में अन्धकार छा गया था। चुकीं मारुती नंदन उस वक़्त बहुत छोटे थे इसलिए उन्हें लगा था की सूर्य कोई फल है और उन्होनें सूर्य को फल समझ कर निगल लिया था।
इसके बाद बहुत मिन्नतों के बाद उन्होनें सूर्य देव को वापिस उगला था और तब जाकर संसार में फिर से उजाला हो पाया था। आपको बता दें की हनुमान जी जब धरती से सूर्य तक पहुंचे थे तभी उन्होनें पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का आकलन कर लिया था जो की करीबन उतना ही है जितना की नासा के वैज्ञानिकों ने बताया है। हनुमान चालीसा के एक चौपाई में इस बात का जिक्र किया गया है।
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