किसी ने खूब कहा है कि प्यार किया नहीं जाता है, बल्कि हो जाता है। प्यार को न तो जाति दिखता है और न ही धर्म। क्योंकि वह लालच का लबादा नहीं ओढ़े होता है, तभी तो प्यार कहीं और किसी से भी हो सकता है। ऐसा ही डॉ. अंचल पांडेय व डॉ. जितेंद्रवीर सिंह के साथ भी हुआ है, जिन्हें सीएसजीएमयू कानपुर में रैगिंग के दौरान प्यार हो गया था। हालांकि, दोनों को एक साथ रहने के लिए काफी संघर्ष भी करना पड़ा है। परिवारीजनों के उलाहने व गुस्से के घूंट भी उन्हें प्यार से पीना पड़ा था।
अपने प्यार को परिवारीजनों का प्यार मिले। इसके लिए उन्हें सालों तक इंतजार करना पड़ा। आखिरकार दोनों के प्यार से परिजनों के गुस्से की दीवार ढह गई। छत्रपति शाहूजी महराज यूनिवर्सिटी (सीएसजीएमयू) कानपुर में मेडिकल की पढ़ाई के लिए ग्रीन पार्क निवासी जितेंद्रवीर ने वर्ष 2004 में दाखिला लिया था। वर्ष 2005 में भी लखनऊ की रहने वालीं अंचल पांडेय ने भी इसी यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। बकौल डॉ. जितेंद्र, ‘मेरे साथी जूनियर की रैगिंग ले रहे थे। वो भी साथियों के साथ थे। इसी दौरान मेरी नजर अंचल (डॉ. अंचल) पर पड़ी। इत्तेफाक से उनकी नजर भी मुझ पर थी। दोनों मुस्करा दिए। सच कहूं तो यहीं प्रेम का बीज पड़ा। दो-चार दिन के बाद फिर मिले।
इसके बाद दोनों में बातचीत होने लगी। मुझे मालूम नहीं था कि प्यार हो गया, लेकिन प्यार का परवान चढ़ता गया। अपने प्यार के बारे में घरवालों को बताई, तो वह गुस्से से भर गए। बहरहाल, पढ़ाई पूरी होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैं पुणे चला गया और वो लखनऊ चली गईं। मगर बातचीत का सिलसिला जारी रहा’। पढ़ाई पूरी होने के बाद 10 सितंबर 2013 को दोनों वैवाहिक बंधन में बंध गए। इनसे एक पुत्री वीरा सिंह भी हैं, जो साढ़े तीन वर्ष की हैं।
डॉ. जितेंद्र बताते हैं कि प्यार को मंजूरी मिल जाती, लेकिन दोनों अलग-अलग जाति से थे। दोनों के माता-पिता इस रिश्ते को अपनी रजामंदी नहीं दे रहे थे। आखिरकार, उनके निश्छल प्रेम ने सभी के प्रेम को जीत लिया। मुश्किलें बहुत आईं, लेकिन मुझे अपने प्रेम और ईश्वर की महिमा पर यकीन था। रील लाइफ में प्रेमिका के भाई और प्रेमी के दोस्त की प्रेम की प्रगाढ़ता में अहम भूमिका होती है। अक्सर यही भूमिका रियल लाइफ में दिख ही जाती है। डॉ. अंचल व डॉ. जितेंद्र के प्रेम में भाई व दोस्त तरुण राणा की अहम भूमिका रही है। स्वयं डॉ. जितेंद्र भी इस बात को बड़े ही साफगोई से कहते हैं कि इन लोगों ने बुरे और अच्छे वक्त में साथ दिया है। यदि वह साथ नहीं देते तो शायद स्थिति कुछ भी हो सकती थी।